रंगमंच की उपयोगिता


कला के क्षेत्र में रंगमच का स्थान यदि सर्वोपरि रखा जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।  क्युकी रंगमंच ही एक ऐसी विधा है जहाँ पर कला के सभी अहम पहलुओं को देखा जा सकता है , यथा अभिनय , नृत्य , प्रकाश , गायन , वादन आदि।  आज के इस दौर में जहाँ हर हफ्ते दसियों भारतीय फिल्में आती हैं और अंतर्राष्ट्रीय फिल्मो का भी अपना एक विशेष बाजार हैं वहाँ पर रंगमंच के लिए एक चुनौती तो जरूर दिखाई देती है , लेकिन इस चुनौती के बावजूद भी शायद ही रंगमच की उपयोगिता पर कोई असर पड़ा हो।  आज भारत की कोई भी फिल्म इंडस्ट्री हो , यथा बॉलीवुड , टॉलीवुड , भोजपुरी सिनेमा , बांग्ला फिल्म या कोई भी क्षेत्रीय सिनेमा सभी जगह रंगमंच के कलकारो की पहुँच  और उनकी उपलब्धियों को देखा जा सकता है।  आज यदि सिनेमा जगत का कोई भी बड़ा प्रस्तुतकर्ता किसी छोटे शहर में जाकर अपनी फिल्म की शूटिंग करता है तो इससे उस क्षेत्र के रंगकर्मियों को एक बहुत अच्छा अवसर मिलता है।  

कुछ समय से ये प्रचलन भी देखा जा रहा है की बहुत से प्रोडूसर छोटे-छोटे शहरों मैं शूटिंग करके नए कलाकारों को काम दे रहें हैं।  और छोटे पर्दे ने तो जैसे कलाकारों के बीच क्रांति का संचार कर दिया है। छोटे पर्दे पर तो कलाकारों का एक बहुत बड़ा समूह देखा जा सकता है। और यहाँ पर अवसरों की भी भरमार है।  लेकिन ये जितना सुनने में आसान लग रहा है वैसे उतना आसान होता नहीं है।  क्युकी कला के क्षेत्र में जुगाड़ जैसा कुछ नहीं होता , अगर आप में प्रतिभा है तो आप को उपयुक्त जगह मिलना स्वाभाविक हो जाता है। लेकिन इस जगह को पाने के लिए बहुत मेहनत की जरूरत होती है।  वैसे थिएटर आर्टिस्ट पर हमेशा से ही यह प्रश्न चिन्ह लगा है की वो कैमरा के सामने बहुत बुरे होतें हैं , क्युकी उनकी डायलॉग डिलीवरी और चेहरे का एक्सप्रेशन बहुत लाऊड होता  है. लेकिन बॉलीवुड के बहुत से एक्टर ऐसे हैं जिन्होंने इस मिथ को गलत साबित किया है , यथा अनुपम खेर , शबाना आज़मी , रवि किशन , सीमा विश्वास , मनोज बाजपाई , और न जाने कितने नए कलाकार।  जिनकी श्रृंखला बहुत बड़ी है।  इरफ़ान खान जैसे कलाकारों ने रंगमंच से ही अपना करियर शुरू किया और बॉलीवुड  हॉलीवुड तक अपना परचम लहराया है।  ऐसा नहीं है कि हमने बहुत कुछ प्राप्त कर लिया है , अभी सफर तो बहुत लम्बा है लेकिन संभावनाओं के धरातल पर बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है और प्राप्त करने की जरूरत भी है।  

अगर हम बहुत दूर न जाएँ तो देखने को मिलता है कि इस लोक सभा चुनाव में भी रंगमंच का बहुत बड़ा हाँथ है।  नुक्कड़ नाटक के दम पर आम आदमी ने अपना प्रचार अभियान शुरू किया।  नुक्कड़ नाटक के दम पर ही बीजेपी गाँवों और शहरो के उस कोने में पहुंच सकी जहाँ टेक्नोलॉजी का पहुँचना अभी कुछ दिनों तक संभव नहीं है।  और नाटक किसी पार्टी विशेष या धर्म विशेष से जुड़ा नहीं होता।  रंगमंच हमेशा प्रतिभा विशेष , रचनात्मकता विशेष और कल्पना विशेष होता है।  यदि ये कहा गया है की साहित्य समाज का दर्पण है तो रंगमंच उस दर्पण में दिखने वाले भविष्य को प्रदर्शित करने का बहुत बड़ा माध्यम है।  और इसे कोई नहीं नकार सकता।  आज टेक्नोलॉजी के दम पर रंगमंच का स्तर भी काफी बढ़ गया है।  रोजगार के अवसर के साथ -साथ ग्लैमर का भरपूर मौका रंगमंच के माध्यम से मिल सकता है।  लेकिन अगर जरूरत है तो संयम की और लगातार प्रयास करने की।  कभी न हारने वाला व्यक्तित्व रंगकर्मी को किसी भी समय सब कुछ दिला सकता है।  

वैसे ऐसा नहीं है की सभी कुछ बहुत अच्छा ही होता है, यहाँ पर भी भ्रष्टाचार  की असीम सम्भावना होती है।  किसी की कहानी को चुरा लेना , किसी के संगीत को कॉपी कर लेना आदि जैसे कुकृत यहाँ पर भी बहुत होतें हैं , लेकिन किसी की कला को चुराना न कभी संभव हुआ था और न ही होगा।  सोशल मीडिया के माध्यम से अब छुपी प्रतिभा को भी प्रचारित और प्रसारित किया जा सकता है।  अपनी कला को सबसे पहले पब्लिश कर के हम ऐसे लोगो को कटघरे में खड़ा कर सकतें हैं जो दूसरो के काम को अपना काम कह कर बेचतें हैं।  आज एक कलाकार भी गर्व से कह सकता है कि वह बेरोजगार नहीं है।  रंगमंच में अभिनय के अलावा भी बहुत से क्षेत्र होतें हैं जहाँ रचनात्मकता को सराहा जाता है यथा प्रकाश व्यवस्था , स्क्रिप्ट राइटिंग , आर्ट डायरेक्शन , मेक अप , म्यूजिक , प्रचार (मीडिया कोर्डिनेशन ) और बहुत कुछ जहाँ पर नाम के साथ - साथ पैसा भी होता है।  



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