मरहम

उनसे सुना था ...
लाइन के बीच मे पढो
दर्द का सुराख़ मिलेगा
वही कहीं कोने मे दर्द के लिए
मरहम भी मेलेगा ।

लाइन के बीच मे पढ़ा
लाइन के कोने मे पढ़ा
पढ़ पढ़ कर सभी कुछ
फिर से
बिन पढ़ा हुआ ।

फिर खड़े हो कर
हाशिये पर
शब्दों को देखा
कुछ दिखा !
धुंधला सा
अक्षरों के बीच मे
था मेरा
दर्द

सूनेपन के साथ लिपता हुआ
अँधेरे के साथ सिमटा हुआ
था , उसे भी इंतज़ार
मरहम का ।

लाइन , शब्द , अक्षर
तो आगे बढ़ गए
दर्द की छाया
आज भी इंतज़ार मे है
अपने
मरहम के !

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