dono ankhen ...

सर्दी की अँधेरी रात
और
रजाई के आखिरी छोर से झाँकतें
पैरो के आखिरी छोर .

कमरे की बंद चार दिवारी मे
खुली दो ऑंखें .
अँधेरे की बंद आँखों से
बाते करते
दो अँधेरे .

कमरे के अँधेरे को
रौशन तो कर सकतें है ,
आँखों के अँधेरे को कैसे दूर करें ?

इस अँधेरे मे
पैरों की पौलियाँ
आपस मे बातें करतीं बेचारी ,
एक पैर की अनछुई बातें
दुसरे को बतातीं बेचारी .

अँधेरे को कोसते
दो पैरो और खुली आँखों की कहानी .

इतरा सकती है,
पौलियाँ
आँखों के सामने .

न उजाला सही ,
लेकिन
इस अँधेरे मे एक सर्द
एहसास पर
इतरतीं पौलियाँ .

बेचारी ऑंखें
एहसास की मोहताज़ ,
सिर्फ लड़ाती
नज़रें
अँधेरे की आँखों से .

सपनो से भी लाचार ये
खुली ऑंखें !
क्यों नहीं आते
आंसू
एक एहसास बन के ,
शायद
ये दोनों ऑंखें भी कर सकतीं
आपस मे बातें .

मिल जाती दोनों आँखों की
गीली बूंदें
और
कह देतीं
हम भी साथ है
दोनों ऑंखें !   

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