न ...बा बा... न

 
 प्राचीन काल से लेकर आज तक हम इस बात को मानने से इनकार नहीं कर सकते कि , जीवन मे एक गुरु के बिना शायद अभीष्ट लक्ष्य तक नहीं पंहुचा जा सकता है . किन्तु आज के सामाजिक बाज़ार मे इस 'गुरु' शब्द का स्थान शायद  बाबायों ने ले लिया है . दिल्ली मे एक बाबा के तथा कथित दावे और लखनऊ मे उसके बिरोध मे प्रदर्शन किसी बाबा विशेष कि उपयोगिता या अनूप्योगिता को सिद्ध नहीं करते बल्कि ये दिखातें है कि आज के तकनिकी युग मे भी बहुत लोग ऐसे है जो चमत्कारी बाबा को ही अपना आखिरी हल मानतें है , मै किसी भी बाबा के त्याग और सेवा पर प्रश्नचिंह नहीं  लगा रहा हू , क्यूकि किसी कि मेहनत के बारे मै कुछ गलत कहना अनुचित है , लेकिन अगर लोगो मै बेचैनी है तो कुछ तो ऐसा पक रहा है जिसकी सुगंध या दुर्गन्ध शायद लोगो तक पहुचने लगी है . मानव कि ये आदत होती है कि जब वह  मुसीबत मै होता है , तभी भगवान् को याद करता है , या कि ये कहा जाये समर्पण करता है, और उसके लिए  मानव को जो भी रास्ता दिखाई देता है वो वहां जाने के लिए तैयार रहता है ,चाहे उसे इस दौरान कितने ही रास्तों मै धोखा मिले  और वह किसी के सामने झुकने के लिए तैयार हो जाता है, और ऐसे लोगो कि मजबूरी का फायदा ऐसे बाबा उठा रहें है . किन्तु चिंता  कि बात ये है कि  अगर बाबा आप को कोई कानूनी उपाय बतातें है , बच्चो के लिए अधिक पढाई करवाने का हल बतातें है , आपसी कलह मिटाने  के लिए कोई ताबीज़ देतें है या फिर अधिक संपत्ति पाने के लिए कोई जादुई विधि बतातें है तो सोच कर देखिये दोषी कौन है , हम या बाबा ..... हमारी कानूनी व्यवस्था हमे मजबूर करती है बाबा के पास जाने के लिए, अपने बच्चो से अधिक से अधिक योग्यता कि अमानवीय लालसा हमे मजबूर करती है बाबा के पास जाने के लिए , आपसी कलह , असंतोष और जल्दी से जल्दी अमीर बनने का लालच हमे ले जाता है बाबा के पास .

आज के इस युग मे और खास तौर से भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश मे कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय भावनायों को नुक्सान पहुचाये बिना अपना कोई भी काम कर सकता है , और  तथाकथित बाबा क्या कर रहें है, वो भी तो अपना काम ही कर रहे है और खुले आम कह रहे है कि उनका कार्य जन कल्याण के किये है , देश हित के लिए है  . लेकिन इसके विरोध मे जब कुछ जागरूक लोग कहतें है कि ऐसे बाबा लोगो को गुमराह कर रहें है और संविधान के अनुच्छेद २५, अन्तः करण कि और धरम के अबाध रूप से मानने , आचरण और प्रचार करने कि स्वतंत्रता , के तहत इन बाबायों को चुनौती देतें है तो उनके प्रचारक आ कर चमत्कार के किस्से सुना जातें है , और इन चंद जागरूक लोगो का मुह यह कह कर बंद कर दिया जाता है कि ये धरम विरोधी है . आज  एक आम आदमी दिन रात मेहनत करता और अपना पैसा किसी और जगह इन्वेस्ट करता है ताकि उसे भविष्य मे और फायदा हो , तो क्या इन बाबायों को  इस सच से अलग रखा जा सकता है , इसमें कोई शक नहीं कि न जाने कितने चेत्रो मे ऐसे लोगो  का अथाह पैसा लगा हुआ है , कही इन लोगो मे से कोई हमारा या आप का बाबा तो नहीं है ?  समस्या ये है कि हम इन बाबायों श्रद्धा रखतें है और जब हम बात करतें है श्रद्धा  कि तो वहां पर तर्क का कोई स्थान नहीं होता है , अतः लोग अपने बाबा के प्रति कुछ नहीं सुन सकतें , लेकिन अगर भगवन भी आज होते तो वो कभी भी एक अन्धें भक्त को न अपना पातें , तो आप कब जागोगे , अपने आप को सुधारो , लोगो के बारे मे सोचो , शायद फिर किसी बाबा कि जरूरत न पड़े . क्यूकि गुरु कि तलाश जरूरी है लेकिन उसके लिए गलत दिशा मे खुद को गुम कर देना उचित नहीं है , क्यूकि ऐसे रास्तों से हमे कहना चाहिए न बा बा न ...! 

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