बच्चे को २५ प्रतिशत से और जादा चाहिए .
उच्चतम न्यायालय का फैसला , निजी स्कूलों मे ,शिक्षा के अधिकार के तहत , निर्धन वर्ग के बच्चो को २५ प्रतिशत स्थान देने का प्रावधान एक सकारात्मक विचार है, और कोई भी इसका विरोध नहीं कर सकता. लेकिन यदि हम बात करें गाँव कि जहाँ ८० प्रतिशत सरकारी स्कूल है वहां पर शायद इसका कोई असर नहीं दिखेगा . दूरदराज इलाको मे जहाँ अध्यापक और विद्याथी अनुपात बहुत कम वहां भी शायद इसका कोई फायदा नहीं होगा, क्यूकि यदि कर्नाटक के कोसी जैसे गाँव मे अध्यापक पढाने नहीं जायेगा तो शत प्रतिशत बच्चो का भविष्य अँधेरे मे हो सकता है. सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्राइमरी स्कूल और वहां बच्चो कि संख्या बड़ी है, अतः अब अगली चुनौती शिक्षा के स्तर कि है. अब बात आती है , अधिकार का धारक और कर्त्तव्य का धारक , अधिकार का धारक यानी वो ६ से १४ साल का बच्चा या उसके माता पिता , किन्तु प्रश्न है कि क्या माता पिता(गरीब बच्चे के माँ बाप ) इतने जागरूक है कि वो अपने अधिकार कि मांग कर सकें और यदि कर भी ली तो क्या वो माता पिता(मध्यम वर्गीय ) जो कहेगें "उनका बच्चा " और "हमारे बच्चे " के साथ पढ़ेगा ? क्या समाज कि ऐसी सोच को रोका जा सकता है ? और कर्त्तव्य का धारक यानी राज्य , क्या उसके पास इस प्रावधान को कार्यान्वित कराने के लिए पर्याप्त संसाधन है ? अतः शायद हमे पहले यह सुनिचित करना होगा कि हमारे बच्चो का शिक्षा का स्तर बड़े और सभी तक स्वस्थ माहौल मे शिक्षा कि पहुच हो.
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