भारतीय रंगमंच दिवस (३ अप्रैल ) (i next ,my view)

भारतीय रंगमंच  दिवस (३ अप्रैल )
अभी हम लोगो ने २७ मार्च को विश्व रंगमंच दिवस मनाया और ३ मार्च को हम भारतीय रंगमंच दिवस मना रहे है. इस बार दोनों मे एक समानता है . २७ मार्च  को भी मंगलवार था और ३ अप्रैल  को भी मंगलवार है - कहने का मतलब सिर्फ इतना है की अब भारत और विश्व रंगमंच का समय कही न कही साथ साथ है , आज रंगमंच की जरूरतें और चुनौतिया मात्र भारत विशेष की न हो कर वैश्विक हो गयी है . आज जहाँ एक ओर रंगमंच ने लोगो को अवसर , नाम , प्रसिधी और ग्लामौर दिला कर समाज  मे अपना स्थान महत्वपूर्ण बनाया है वही कई लोगो के  नॉन प्रोफ़ेस्सिओनल attitude के कारन बहुतो को निराश भी किया है. तथा कथित चंद माठाधीशो के कारन , नाटक से जुड़े एक्टर्स को , नाटक के विषय को  यहाँ तक की नाटक के स्तर को भी लज्जित होना पड़ता है. किन्तु सकारात्मक सोच के  साथ कुछ युवा लगे है जो भारतीय रंगमच को अपनी युवा सोच के साथ सभी स्तरों पर आगे ले जा रहें है चाहे वह लेखन हो , निर्देशन हो या फिर अभिनय ! और इसके उदाहरण मंचित होने वाले नाटको मे देखा जा सकता है जहाँ समसामयिक विषयों को बहुत ही यथार्थ प्रस्तुतीकरण के माध्यम दिखाया जा रहा है. आज जरूरत विचारो को स्थान मिलने की है , न की सरकारी अनुदान के नीचे स्वार्थ की रोटियां सेकने की , क्यूकि "जिस विचार का समय आ चूका है उसे कोई नहीं रोक सकता." अतः रंगमंच के रंगों को भी  कोई नहीं रोक सकता..... इन्हें उड़ने दो, सबको रंगने दो ! 

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