राष्ट्रपति या सत्तापति ?

भारत एक लोकतांत्रिक देश है , और संवैधानिक प्रमुख होने के नाते सभी भारतीय राष्ट्रपति का सम्मान करतें है . यह एक गरिमा पूर्ण पद है . कितना विचित्र लगता है सुनने मे कि श्री प्रणव मुखर्जी का नाम राष्ट्रपति पद के लिए नामित किया जा रहा है, इसमें आपत्ति  सिर्फ इतनी है कि जिस व्यक्ति को एक राजनेता होने पर हम उसकी निर्भीक हो कर आलोचना करते रहे , अब उसको राष्ट्रपति वाला सम्मान देने के लिए सब कुछ भुलाना पड़ेगा .  और सबसे बड़ा आश्चर्य तब होता है जब हमारे राजनेता राष्ट्रपति जैसे पद को भी सौदे वाली राजनीती बना देतें है , कल तक जो खुले आम कह रहे थे हम कांग्रेस के किसी भी प्रतिनिथि का विरोध करेंगें , वो आज कांग्रेस के सुर मे सुर मिला रहे है . कल तक जो सपा  पार्टी विशेष के प्रमुख  होने के नाते राष्ट्रपति बनने का सपना देख रहे थे वो भी कांग्रेस के साथ हो गए और तो और घोषित रूप से कह रहें है कि "इस बार किसी  राजनीतिक व्यक्ति को ही राष्ट्रपति होना चाहिए", क्यों भाई एक ही पद तो बचा था जहाँ लोगो ने उँगलियाँ नहीं उठाई थी , अब उसका भी बेडा गर्क  क्यों करना  चाहते हो ?  और 'धमकी कि राजनीती' करने वाली हमारी दीदी को भी मिला ही लिया जायेगा . बाकि लोग तो "आम सहमती " का दोधारी औजार  उठा ही चुके है .
 
एक बहुत महत्वपूर्ण बात ये है कि जो व्यक्ति अपने पूरे राजनीतिक जीवनकाल मे कांग्रेस का एक वफादार सिपाही बन कर रहा  है , तो क्या वो एक निष्पछ  पद कि गरिमा को बनाये रख सकता है ?और यदि मान भी लिया जाये कि एक बार  पद मिलने के बाद उनका निर्णय निष्पछ  होगा तो क्या वो अपने राजनीतिक कार्यकाल के इस मोड़ पर अपनी पार्टी से ही विरोध करतें नज़र आयेगें ? इसकी सम्भावना तो बहुत कम लगती है . तो अंत मे हमे जो राष्ट्रपति  मिलेगा वो 'राष्ट्र  का पति 'तो नहीं हो सकता  हाँ 'कांग्रेस  का पति' जरूर हो सकता है, वो भी एक इमानदार "सत्ता  पति  ".
 

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