होरी और हैरी के आदर्श कौन है ?

आमिर की आवाज अगर ५० प्रतिशत युवा भी मान लें तो एक स्वस्थ व सुद्रण समाज की कल्पना करना अतिशयोक्ति न होगा . क्यूकि जैसे अमिताभ बच्चन के "दो बूंद जिन्दगी के " भारत को पोलिओ फ्री देश बनाने मे सफल हुआ है उसी तरह आमिर का शो कुछ  अच्छा करने की संभावना रखता है लेकिन   मनुष्य में  अच्छाई देर से आती है बुराई तुरंत आ जाती है , क्यूकि बुराइयों में एक सहज आकर्षण होता है . आज का आम आदमी और विशेष रूप से युवा , अपना आदर्श अधिकतर अभिनेता/ अभिनेत्री या खिलाडी को ही बनाता है. और अगर इसमें कोई शक हो तो तो आज कल प्रचारित होने वाले किसी भी विज्ञापन को देखा जा सकता है, क्यूकि विज्ञापन का लक्ष्य ही आम लोगो तक पहुंचना    होता है , और विज्ञापन  का मालिक फायदा और घाटा  का पाठ सबसे अच्छी तरह जनता है . और अगर बात शादी की हो तो सबसे पहले वधु ये सोचती है एश्वेर्या ने कितना मंहगा लहंगा पहना था और वर सोचता है की अभिषेक ने किस डिजाइनर की शेरवानी पहनी थी . 
 
 आमिर खान की बात सही है की युवाओं को दिखावे मे पड़ कर फिजूल खर्च नहीं करना चाहिए , और "शरबत वेडिंग " करनी चाहिए लेकिन हमारे युवा तो बोलीवुड स्टाइल मे "कोकटेल वेडिंग "  पर ही विश्वास रखतें है क्यूकि  कही न कही लोग अपना आदर्श ही ऐसे लोगो को बना चुके है जो की "फिजूल खर्च " को ही आज का फैशन / चलन बना देने पर अमादा है. और यह अनुकरण की प्रथा नई नहीं है , चाहे वह मुंशी प्रेमचंद्र के उपन्यास गोदान का "होरी "  हो या मेरे मोहल्ले का "हैरी  " , दोनों के आदर्श तथा कथित "बड़े लोग " ही होतें है . इसीलिए ये लोग शादी को "बड़ा दिन " बनाने के लिए तन - मन -धन से लग जातें है ,चाहे इसके लिए कितना ही शारीरिक कष्ट हो, मानसिक तनाव हो या फिर कितना ही उधर क्यों न लेना पड़े ! अतः एक नई सोच के साथ "सही आदर्श " के चुनाव की जरूरत है वही दूसरी ओर जो लोग समाज के "आदर्श " बन जातें है उन्हें व्यक्तिगत सुख के आगे सामाजिक सरोकारों को प्राथमिकता देनी चाहिए, तभी शायद इस तमाशे को रोका जा सकता है .

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