Be human for "humanities"



आज अगर आप का बेटा या बेटी किसी टेक्निकल कॉलेज या मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहा होता है तो समाज में उस माँ -पाप को और उस औलाद को बहुत ही सम्मान की नज़र से देखा जाता है . ऐसा क्यों होता है, ये तो शायद बता पाना मुश्किल है , लेकिन इतना  जरूर है कि तुलनात्मक रूप से जो मानविकी का विद्यार्थी होता है उसे वो अपेक्षित सम्मान नहीं मिलता है . आज वैश्वीकरण के इस दौर मे हमारे देश में अवसरों कि कोई कमी नहीं है, और लगभग सभी क्षेत्रों में नई प्रतिभायों को कुछ न कुछ नया करते हुए देखा जा सकता है . लेकिन मानविकी वाले थोडा पीछे इस लिए भी माने जा सकतें है कि उनकी पढाई कही न कही सीधे " बाज़ार" से नहीं जुडी होती . तो शायद हमे जरूरत है एक ऐसे मानविकी कोर्सेस  की जिसकी पढाई को बाज़ार से सीधे जोड़ा जा सके . और इसी बात  को व्योहारिक    बनाने के लिए हमारे विश्वविद्यालयों के कोर्सेस को और अधिक मार्केट ओरिएंटेड  होना पड़ेगा.
एक आम धारणा है कि  टेक्नोलोजी का मतलब है कुछ अलग से योग्यता , कुछ मैथ्स , कुछ साइंस और कुछ बहुत कवीलियत वाले लोग . और इस भ्रम ने ही समाज में विद्यार्थियों को दो भागो में बाँट दिया है एक प्रोफेसनल पढाई करने वाले और दूसरे बेकार आर्ट्स की पढाई करने वाले . लेकिन शायद हम भूल जातें है कि टेक्नोलोजी का मतलब गणित या विज्ञान नहीं है , टेक्नोलोजी का मतलब सिर्फ "ज्ञान (knowhow)" है. और ज्ञान किसी भी क्षेत्र विशेष तक ही सीमित नहीं है . भारत की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित सिविल सेवा में माना आज के समय में शुरू की अधिकतर रैंक फ्रोफेसेनल कोर्सेस के विद्यार्थियों की होती है लेकिन इस सेवा में आज भी संख्या मानविकी के ही विद्यार्थियों की अधिक है . और तो और इन्फोसिस जैसी कम्पनी सिंपल आर्ट्स ग्रैजुएट को भी ६ महीने कि ट्रेनिंग दे कर उन्ही प्रोफेसनल के साथ खड़ा कर देती है जो कि इंजीनियरिंग कर के आयें हैं . इसका मतलब तो ये हुआ कि ज्ञान स्वयं में कोई फरक नहीं करता , ये तो हम जैसे सामाजिक प्राणी है जो कि डिग्री के आधार पर सामने वाले को परखतें हैं .

आज पत्रकारिता , पर्यटन , बी पि  ओ (BPO) उद्द्योग , कला , सिनेमा , नाटक सभी क्षेत्रो में मानविकी वालों की ही अधिकता है , लेकिन उसके बाद भी यदि कोई विश्वविद्यालय से M A या B A कर रहा है तो लोग बड़े ही आसानी से उसे उसका असफल भविष्य बता देतें हैं . आज के समय में इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज की संख्या कुकुरमुत्ते कि तरह बढती जा रही है , और आज का मध्यम वर्ग बढ़ी हुई तनखाह के साथ उच्च वर्ग के श्रेणी में आने को बेक़रार है , और चाहे उसके बच्चे में वो प्रतिभा हो या न हो , अधिक पैसा होने के कारण हर कोई अपने बच्चे को किसी भी कॉलेज  से  इंजिनियर बनाना चाहता है . और अंत में वो लाखो रूपए खर्च करने के बाद भी उसी मानविकी वाले सफल छात्र के बगल में खड़ा दिखाई देता है . तो जरूरत इस बात की है कि भारत जैसे देश में जहाँ ६० प्रतिशत से अधिक संख्या गांवों में रहती है वहां यदि ज्ञान को प्राथमिकता देते हुए बाज़ार की मांग के अनुसार व्योहारिक शिक्षा दी जाये तो तथा कथित टेक्नोलोजी वालों की तरह एक मानविकी वाले विद्यार्थी को भी अपेक्षित सम्मान मिलेगा. और इसी के मद्देनज़र कुछ केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने ऐसे कोर्सेस को शुरू किया है , जहाँ विद्यार्थी अपने विषयों को  अपनी रूचि के अनुसार चुनेगें और पढाई में पूरा जोर बाज़ार कि मांग के अनुसार "ज्ञान का अर्जन" होगा न की किसी डिग्री विशेष का देखावा  . दिल्ली विश्वविद्यालय ऐसे उदाहरणों में  से एक है, जिसने इसी वर्ष "मेटा कॉलेज " संकल्पना के तहत बी टेक हुमेनिती ( Btech humanity) का कोर्से शुरू किया है. कहने का तात्पर्य मात्र इतना है कि हमारे देश के लिए सबसे अधिक आवश्यक है एक " स्किल्ड मानव संसाधन " तभी हम अन्य देशो के सामने चुनौती पैदा कर सकतें है , और मानविकी ने इतिहास से लेकर , वर्तमान तक अपनी भूमिका को ज़िम्मेदारी से निभाया है , और भारत के सुन्दर भविष्य के लिए टेक्नोलोजी वाले छात्रों के साथ -साथ मानविकी के विद्यार्थियों का सम्मान भी आवश्यक है. 

Comments