happy new year ... damini!




" हैप्पी न्यू ईयर " तीन शब्दों का ये वाक्य कितना कुछ कहता है हमसे , नया साल जो की खुशियों से भरा हो आप के लिए और आप के परिवार के लिए . जहाँ आन्सुयों की कोई जगह नहीं है , सिर्फ एक ख़ुशी हो चारो तरफ , सिर्फ रौशनी हो  चारो तरफ और अपनों का  साथ हो चारो तरफ . और अगर इस माहौल में कोई दुःख या अँधेरे की बात करता है तो अजीब सा लगता है , अजीब सा लगता है जब कोई  कहता है मेरी बेटी मर गयी , अजीब सा लगता है जब कोई कहता है की मेरे घर में रौशनी नहीं है , अजीब सा लगता है जब कोई कहता है मेरी इज्ज़त लुट गयी , अजीब सा लगता है जब कोई कहता है मैंने न्यू ईयर दारु नहीं आन्सुयो के घूट पी कर मनाया है .... क्या करें लगता तो अजीब है लेकिन सच यही है . मोमबत्तियां तो तब भी जलीं थी जब कोई बिस्तर पर आखिरी सांसें गिन रहा था , रौशनी तो तब भी थी जब किसी का जीवन अँधेरे में डूबने वाला था , भीड़ तो तब भी थी जब एक अकेली इस शोर में अपने आप से लड़ रही थी। न्यू ईयर तो तब भी आने वाला था जब किसी का जीवन ख़तम होने वाला था . लेकिन हम तब भी अपने में खोये हुए थे और अब भी मौसम के नशे में खोये हुए हैं। कल हमारे पास एक काम था की शाम को मोमबत्तियां जलाना  है, किसी न किसी समूह का हिस्सा बनना है अपनी आवाज को सबसे आगे ले जाना है . लेकिन आज सिर्फ जली हुई आग की राख़ पर रोने के सिवा कुछ भी करने को नहीं है . कितने ही मुद्दे आतें हैं और चले जातें हैं , लोग लिखतें हैं , बातें करतें हैं , और भूल जातें हैं क्युकी बहुत से नए मुद्दे आगे उनका इंतज़ार कर रहे होतें हैं . 

कितने ही कानून बनें मानव जाति को सुधारने के लिए , कितने ही नए विचार आये कुछ नया करने को लेकिन उन सबका अंत क्या हुआ , एक और संवैधानिक संशोधन ! अगर संविधान का इतना ही असर होता तो क्या हम विकासशील देश के लोग इतना नहीं समझ सकते थे की सामाजिक , आर्थिक और राजनैतिक न्याय का क्या मतलब है , क्या हम इतना नहीं समझ सकते थे की "भारत माता " का गुण गान करने वाला देश माँ के दूध कर कर्ज तो उतारना दूर उसका दूध कलंकित करने के लिए क्यों उतारू हुआ है। खैर नया साल अपनी दहलीज  पर नई सांसें लेना शुरू कर चुका है , लोग पुरानी बातों से बाहर निकल चुकें हैं , और अब तो जंतर - मंतर की मोमबत्तियां भी बुझ चुकी होगीं और मैं पुराने साल का रोना ले कर बैठा हूँ . अब तो नए विषय होगें , नई सोच होगी , नए- नए लोगो से मिलना होगा। और हाँ ! नए कानून भी तो होगें , अगर वही पुराने कानून हुए तो नया " भारत का संविधान " कौन खरीदेगा ? क्युकी नए विद्यार्थियों को तो नए सिरे से पढाई करनी है , और हाँ "दामिनी " की नई केस स्टडी होगी , तभी तो आगे  होने वाले कुकर्म को नए सिरे से पर्भाषित किया जा सकेगा . और यदि कुछ पुराना होगा तो , उस औरत के माँ - बाप के अस्तित्व विहीन आंसूं होगें और एक फोटो पर लटका वो हार होगा जो उस औरत के माँ - बाप को याद दिलाता रहेगा की तुम्हारी बेटी की मौत पर पूरा भारत रोया था , और ये फोटो उनसे ये पूंछता रहेगा की तुम्हे और क्या चाहिए ? लोगो ने अपनी न्यू ईयर पार्टी की प्लानिंग छोड कर तुम्हारी बेटी के लिए मोमबत्तियां जलाई , तुम्हे और क्या चाहिए ? 

अच्छा अब काफी हो गया , अब तो न्यू ईयर है , ऐसे केस तो न जाने कितने आये और न जाने कितने आयेगें . नया साल है, मार्किट में नए फैशन के कपडें आयें हैं वो भी तो लेना है और आज तो बाज़ार कुछ ज्याद ही सजा होगा उसकी चका - चौंध भी तो देखनी है , एक दामिनी वो थी जो राज कुमार संतोषी के फिल्म में थी और एक उसी फिल्म से प्रेरित दिया गया नाम दिल्ली के इस "ओल्ड ईयर " केस विक्टिम का है . वहां तो सनी देवल था , जो की अंत तक उसके साथ लड़ता रहा। लेकिन यहाँ कोई सनी देवल है क्या ? शायद न्यू ईयर पार्टी के बाद कोई मिल जाये ! हमें तो नए कपडे खरीदने हैं , क्युकी जब तक खुद को ढकेंगे नहीं , तो दूसरों के कपड़े उतारने में मज़ा कैसे आयेगा . एक बार सोच कर किसी को "हैप्पी न्यू ईयर " कहियेगा . क्युकी क्या ये न्यू ईयर वाकई हैप्पी है ? 

===================================================================धन्यवाद !

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