वोट दे तो किसको ?
भारतीय लोकतंत्र चुनाव दर चुनाव युवा हो रहा है। लोगो में मतदान के प्रति जागरूकता भी बढ़ी है। आज लगभग सभी क्षेत्रो के लोग मतदाता जागरूकता के लिए अपना - अपना योगदान दे रहें हैं , चाहे वह फिल्म अभिनेता हो , खिलाडी हो या फिर कोई जिम्मेदार उद्योगपति हो , सभी लोग प्रत्यक्ष रूप से अपने अधिकार के साथ - साथ अपने कर्तव्य को भी निभा रहें हैं। लेकिन जिस अनुपात में मतदान के प्रति जागरूकता बढ़ रही है उससे दुगने अनुपात में हर चुनाव में एक प्रश्न ये भी बढ़ रहा है कि "वोट दे तो किसको ?" कही न कहीं एक जिम्मेदार वोटर वोट देने के लिए तो तैयार है लेकिन वोट देना किसे है इस प्रश्न से वह हर चुनाव में परेशान रहता है।
यदि विश्लेषणात्मक रूप से देखा जाये तो किसी को किसी पार्टी का घोषणा पत्र अच्छा लगता है तो किसी पार्टी का कोई कैंडिडेट अच्छा लगता है। पार्टी के यदि मूल सिद्धांत अच्छे हैं तो उसका प्रत्याशी उन सिद्धांतो पर खरा नहीं उतर रहा होता है। कुछ दिन पहले सोशल मीडिया में किसी के टाइम लाइन पर ये बहस चल रही थी की " हमें एक जिम्मेदार नागरिक हैं और हमें वोट करना चाहिए। … " बहुत से अनुभवी लोग अपना - अपना ज्ञान दे रहे थे की एक स्वस्थ समाज में मतदाता का बहुत योगदान होता है , वोट देना हमारा अधिकार है , यदि हम वोट नहीं देतें हैं तो हमे अपनी सरकार को बुरा - भला कहने का कोई हक़ नहीं है। … और भी बहुत कुछ.… "इन्ही कमेंट्स के बीच एक युवा ने एक कमेंट किया कि " में वोट नहीं दूंगा " उसका इतना लिखना था की उसके ऊपर सलाह के साथ -साथ देशद्रोही होने के सैकड़ो कमेंट्स ने उसका कमेंट दबा दिया गया। अपने कम अनुभव को दरकिनार करते हुए उस युवा ने उन सभी अनुभवी लोगों के सामने एक और कमेंट लिखा , "क्या मुझे कोई बता सकता है की मुझे किसे वोट देना चाहिए , कौन सी पार्टी और कौन सा कैंडिडेट सबसे अच्छा है। " फिर क्या था , उसके बाद लगभग उस पोस्ट पर सन्नाटा छा गया और अगर किसी ने कुछ कमेंट किया भी तो उस युवा को बिना तर्क और तथ्य के अपने कमेंट में गैर जिम्मेदार और गैर अनुभवी होने का एहसास दिलाया।
प्रश्न फिर से वही का वहीँ रुका हुआ है है " वोट दें तो किसको दें " एक १८ साल का युवा इस उम्र में उसे क्या करना चाहिए और किस क्षेत्र में जाना चाहिए इसका फैसला नहीं कर पाता है और उससे ये उम्मीद की जाती है की वो देश की बागडोर सँभालने के लिए एक नेता का चुनाव करे। मैं ये नहीं कहना चाहता की १८ साल की उम्र वोट डालने की सही उम्र नहीं है। क्युकि नीति नियंताओं ने कुछ सोच कर ही इस उम्र को सही समझा होगा। लेकिन सिर्फ वोट डालना चाहिए इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। आज के इस सूचना और नॉलेज के इस युग में मतदान के प्रति लोगो का प्रतिशत बढ़ा है जो की एक सुखद संकेत है और हम शायद लोकतंत्र की आधी समस्या को हल कर चुकें हैं लेकिन आधी समस्या का हल आज भी इस प्रश्न से बाहर आने की कोशिश कर रहा है कि "वोट किसको दें ?"
इंटर मीडिएट की परीक्षा देने के बाद विद्यार्थी किसी विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने के लिए पूरा रिसर्च करता है। उसके लिए क्या अच्छा है क्या बुरा है वह ये जानने के लिए अपने बड़े और अनुभवी लोगो से सलाह लेता है। वो अनुभवी लोग वो होतें हैं जो तर्क और तथ्यों से उस युवा का मार्ग दर्शन करतें हैं। क्युकी विश्वविद्यालय का चुनाव उन अनुभवी लोगों को उनकी जाति , धर्म और समूह विशेष तक सीमित नहीं कर पाता है। वैसे तो चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर लगभग सभी उम्मीदवारों और उनके इतिहास का व्यौरा दिया हुआ है। जो की एक जागरूक युवा उस वेबसाइट पर जा कर पढ़ सकता है , लेकिन यदि यहाँ पर वह उन अनुभवी लोगों की तलाश करता है तो यहाँ पर ये अनुभवी जाति और धर्म की मानसिकता से ग्रसित लगतें हैं , क्युकी शायद इन लोगो ने चुनाव आयोग की जानकारी को नहीं पढ़ा होगा। खैर शायद वो पीढ़ी तैयार हो रही है तो तर्क और तथ्य का ज्ञान रखती है और अगले चुनाव में इस प्रश्न का उत्तर देने में भी क्षक्षम होगी की "इस बार वोट किसको दें ?"
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