गंजे को कंघी बेचने की कला
देश के विकास के लिए पब्लिक - प्राइवेट पार्टनरशिप की बात बहुत पहले से करी जा रही है। लेकिन इसके नकारात्मक बिंदु हमेशा से ही वाद - विवाद का विषय रहें हैं। क्युकी सामान्यतः ये बात कही जाती है कि सरकारी नीतियाँ जन कल्याणकारी होती हैं और प्राइवेट नीतियाँ प्रॉफिट / लाभ के लिए बनाई जाती हैं। अतः भारत जैसे लोकतान्त्रिक राष्ट्र के लिए कल्याणकारी अवधारणा को ही प्राथमिकता दिया जाना स्वाभाविक है और इन्ही कुछ नकारात्मक कारणों से पब्लिक -प्राइवेट पार्टनरशिप हमेशा विवाद में रहता है। लेकिन इस लोक सभा चुनाव में जिस स्तर का प्रचार हुआ है वहां पर पब्लिक - प्राइवेट में अभीष्ट समन्वय दिख रहा है। यहाँ पर ग्राउंड रियलिटी को जानने वाला राज नेता और बड़े - बड़े कॉर्पोरेट हॉउस के एडवरटाइजिंग गुरुओं ने मिल कर शहरी और ग्रामीण जनता के वैचारिक स्तर को जिस तरह मतदाता कार्यक्रम में जोड़ा है वो काबिले तारीफ है। बीजेपी के चुनाव प्रचार से जुड़े एड गुरु पियूष पांडेय ने अनुसार ," ये बहुत ही अच्छा अनुभव था जिस तरह राजनीतिक पार्टियाँ प्रचार कर रहीं हैं और सभी नेता स्पष्ट रूप से जानतें हैं की उन्हें अपनी प्रचार कंपनी से क्या करवाना है। "
जैसा की सर्व विदित है कि इस बार अपेक्षाकृत चुनाव प्रचार बहुत ही हाई टेक स्तर पर पहुँच गया था। और इसके लिए लगभग सभी पार्टियों ने अपना पूरा दम लगा दिया था। लेकिन आखिरी के तीन महीने में प्रचार का स्तर अपने चरम पर था। वैसे तो सार्वजनिक रूप से 'आप ' पार्टी ने सोशल मीडिया का चुनावी रण क्षेत्र में शुभारम्ब दिल्ली विधान सभा चुनाव से किया और दिल्ली में उसे इसका परिणाम भी मिला। लेकिन प्रचार के स्तर में नंबर वन होने के बाद भी वो ग्राउंड लेवल पर जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर सकी और उसका पार्टी को बुरा परिणाम भी झेलना पड़ा।
इस लोक सभा चुनाव के प्रचार में निर्विरोध रूप से बीजेपी को भी सबसे मजबूत प्रचार रणनीतिज्ञ कहा जा सकता है। वैसे तो सभी पार्टियों ने मल्टीनेशनल कंपनी और टेक सेवी लोगो के द्वारा प्रचार अभियान चलाया था। लेकिन एड गुरु पियूष पाण्डेय द्वारा दिए गए स्लोगन "अबकी बार मोदी सरकार और जनता माफ़ नहीं करेगी " तथा प्रशून जोशी द्वारा " अच्छे दिन आने वालें हैं , हम मोदी जी को लाने वालें हैं। " कुछ ही महीनों में लोगो के जुबान और दिमाक में एक अमिट छाप छोड़ गया। और आज भी ये कुछ स्लोगन विशेषण की तरह हर तरफ इस्तेमाल किये जा रहें हैं। सोशल मीडिया में लगभग सब जगह यही स्लोगन देखने और सुनने को मिल जायेगा। इसके अलावा कांग्रेस का स्लोगन "मैं नहीं, हम और कट्टर सोच नहीं , युवा जोश " जैसे स्लोगन भी प्रचार अभियान में सुनाई दिए। सपा का स्लोगन "मन से हैं मुलायम और इरादे लोहा हैं " और इसका म्यूजिक भी बहुत ही सूदिंग था यहाँ कहने का तात्पर्य ये है कि मार्केटिंग के क्षेत्र में पब्लिक और प्राइवेट लोगो ने मिल कर सफलता प्राप्त की है। यहाँ पर यदि भविष्य में दोनों मिल कर यदि काम करें तो सकारात्मक दिशा सुनिश्चित की जा सकती है।
आज की जरूरत को देखते हुए यह कहने में कोई भी बुराई नहीं है की हम कोई भी कार्य करें हमे हमेशा "रिजल्ट ओरिएंटेड " होना चाहिए। हाँ ! ये जरूर है कि लोकतंत्र में जन कल्याण को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। लेकिन अगर हमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहुँच और स्थिति को और अधिक सुद्रण करना है तो प्राइवेट सेक्टर के अनुभव और हुनर को भी उपयोग में लाना होगा।
बड़े -बड़े मैनेजमेंट कॉलेज में यहाँ तक सिखा दिया जाता है कि "गंजे को कंघी कैसे बेचा जाये " अर्थार्त यदि आप को अपने आप को बेचना आता है तो खरीदार की कोई कमी नहीं है। अब समय है कि जो कही हुई बातें हैं उन्हें जमीनी हकीकत पर सच करके जनता के विश्वास को जीता जाये। और भारत जिन क्षेत्रो में आगे है उन क्षेत्रो का विश्व स्तर पर भी प्रचार किया जाये और "ब्रांड भारत " को विश्व मंच पर विराजमान कर के सभी के लिए विकास के अवसर सुनिश्चित किये जाएँ। तभी हम सच्चे अर्थो में कह सकेगें " भारतवासियों के अच्छे दिन आ गए ".
जैसा की सर्व विदित है कि इस बार अपेक्षाकृत चुनाव प्रचार बहुत ही हाई टेक स्तर पर पहुँच गया था। और इसके लिए लगभग सभी पार्टियों ने अपना पूरा दम लगा दिया था। लेकिन आखिरी के तीन महीने में प्रचार का स्तर अपने चरम पर था। वैसे तो सार्वजनिक रूप से 'आप ' पार्टी ने सोशल मीडिया का चुनावी रण क्षेत्र में शुभारम्ब दिल्ली विधान सभा चुनाव से किया और दिल्ली में उसे इसका परिणाम भी मिला। लेकिन प्रचार के स्तर में नंबर वन होने के बाद भी वो ग्राउंड लेवल पर जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर सकी और उसका पार्टी को बुरा परिणाम भी झेलना पड़ा।
इस लोक सभा चुनाव के प्रचार में निर्विरोध रूप से बीजेपी को भी सबसे मजबूत प्रचार रणनीतिज्ञ कहा जा सकता है। वैसे तो सभी पार्टियों ने मल्टीनेशनल कंपनी और टेक सेवी लोगो के द्वारा प्रचार अभियान चलाया था। लेकिन एड गुरु पियूष पाण्डेय द्वारा दिए गए स्लोगन "अबकी बार मोदी सरकार और जनता माफ़ नहीं करेगी " तथा प्रशून जोशी द्वारा " अच्छे दिन आने वालें हैं , हम मोदी जी को लाने वालें हैं। " कुछ ही महीनों में लोगो के जुबान और दिमाक में एक अमिट छाप छोड़ गया। और आज भी ये कुछ स्लोगन विशेषण की तरह हर तरफ इस्तेमाल किये जा रहें हैं। सोशल मीडिया में लगभग सब जगह यही स्लोगन देखने और सुनने को मिल जायेगा। इसके अलावा कांग्रेस का स्लोगन "मैं नहीं, हम और कट्टर सोच नहीं , युवा जोश " जैसे स्लोगन भी प्रचार अभियान में सुनाई दिए। सपा का स्लोगन "मन से हैं मुलायम और इरादे लोहा हैं " और इसका म्यूजिक भी बहुत ही सूदिंग था यहाँ कहने का तात्पर्य ये है कि मार्केटिंग के क्षेत्र में पब्लिक और प्राइवेट लोगो ने मिल कर सफलता प्राप्त की है। यहाँ पर यदि भविष्य में दोनों मिल कर यदि काम करें तो सकारात्मक दिशा सुनिश्चित की जा सकती है।
आज की जरूरत को देखते हुए यह कहने में कोई भी बुराई नहीं है की हम कोई भी कार्य करें हमे हमेशा "रिजल्ट ओरिएंटेड " होना चाहिए। हाँ ! ये जरूर है कि लोकतंत्र में जन कल्याण को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। लेकिन अगर हमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहुँच और स्थिति को और अधिक सुद्रण करना है तो प्राइवेट सेक्टर के अनुभव और हुनर को भी उपयोग में लाना होगा।
बड़े -बड़े मैनेजमेंट कॉलेज में यहाँ तक सिखा दिया जाता है कि "गंजे को कंघी कैसे बेचा जाये " अर्थार्त यदि आप को अपने आप को बेचना आता है तो खरीदार की कोई कमी नहीं है। अब समय है कि जो कही हुई बातें हैं उन्हें जमीनी हकीकत पर सच करके जनता के विश्वास को जीता जाये। और भारत जिन क्षेत्रो में आगे है उन क्षेत्रो का विश्व स्तर पर भी प्रचार किया जाये और "ब्रांड भारत " को विश्व मंच पर विराजमान कर के सभी के लिए विकास के अवसर सुनिश्चित किये जाएँ। तभी हम सच्चे अर्थो में कह सकेगें " भारतवासियों के अच्छे दिन आ गए ".
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