Sorry, Something went wrong #facebook

#facebookdown, अगर मैं इसे १९ जून का सबसे अधिक इस्तेमाल किया  गया शब्द कहूँ तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।  फेस बुक लगभग पूरी दुनिया में इस्तेमाल किया जाने वाला सोशल नेटवर्किंग साइट है। १९ जून को लगभग ३० मिनट के लिए फेस बुक डाउन था।  फेस बुक पर कुछ भी अपडेट नहीं हो रहा था और स्क्रीन पर लिख कर आ रहा था "सॉरी , समथिंग वेंट रॉन्ग". फेस बुक के जाते ही ट्विटर पर मानो #facebookdown की बाढ़ सी आ गयी।  इस अंतराल में कितने ट्वीट हुए इसकी संख्या देना बहुत मुश्किल है क्युकी शायद जिस समय आप ये लेख पढ़ रहें होगें उस समय भी इसकी संख्या बढ़ती ही जा रही होगी। आज कल तो ब्रेकिंग न्यूज़ का जमाना है।  हमें आज हर जगह सिर्फ फेस बुक डाउन की ही खबर सुनाई दे रही है।  २० जून का प्रिंट मीडिया शायद इसी खबर से भरा हुआ मिलेगा।  

हमने अक्सर लोगों को ये कहते हुए सुना है कि टेक्नोलॉजी को मनुष्य ने बनाया है और टेक्नोलॉजी मनुष्य के ऊपर कभी हावी नहीं हो सकती।  लेकिन आज के समय में ये वक्तव्य कुछ गलत सा साबित हो रहा है।  आज हम टेक्नोलॉजी के ऊपर बहुत अधिक निर्भर हो चुके हैं। अगर थोड़ी देर के लिए कल्पना करिए , इंटरनेट काम करना बंद हो जाये तो कितनो का काम रुक जायेगा।  सरकारी संस्थान हो या फिर गैर - सरकारी , आज सभी लोग इंटरनेट पर निर्भर हैं।  इंटरनेट तो बहुत चीज़ बोल दी।  कल्पना करिये अगर थोड़ी देर के गूगल , जो की सबसे बड़ा सर्च इंजन है अगर वो काम करना बंद कर दे तो न जाने कितने बिज़नेस बर्बाद हो जाएँ।  न जाने कितने लोगो की नौकरी चली जाये , जिसके जिम्मेदार वो लोग नहीं हैं बल्कि टेक्नोलॉजी है।  

अगर मैं ये कहूँ की जैसे शंकर भगवान ने भष्मासुर को वरदान दे कर अपने ऊपर ही आफत मोल ले ली थी ठीक उसी तरह मानव रुपी शंकर ने टेक्नोलॉजी रूपी  भष्मासुर अपने लिए पैदा कर लिया है, तो आज के सन्दर्भ में ये गलत न होगा।  लेकिन यहाँ पर हम टेक्निकल भष्मासुर को मार नहीं सकतें हैं।  क्यकि यहाँ पर एक नहीं और भी बहुत से टेक्निकल माध्यम हैं जो तथाकथित मानव जनित भष्मासुर की श्रेणी में आतें हैं।  फेस बुक के डाउन होतें ही दूसरी सोशल मीडिया साइट्स में फेस बुक डाउन की खबर वायरल हो गयी थी।  

एक चीज़ स्पष्ट करना अति आवश्यक है कि हमारा टेक्निकल भष्मासुर समय को देखते हुए नकारात्मक शब्द नहीं है।  क्युकी इसी भष्मासुर ने लाखों -करोड़ो लोगो को रोजी -रोटी दे रखी है।  माना इसे पैदा हमने किया है लेकिन ये भी हमारी मानव जाति का एक एहम हिस्सा हो गया है।  अगर हम इसे अपने समाज का सदस्य कहें तो भी अनुचित नहीं होगा , क्युकी आज के टेक सेवी लोगो से लेकर नॉन -टेक सेवी लोग भी अपनी दिन चर्या का अधिक से अधिक समय इन्ही टेक्नोलॉजी/सोशल मीडिया  के साथ रहतें  हैं।  और इसका स्पष्ट उदाहरण १९ जून को हुए फेस बुक डाउन से देखा जा सकता हैं।  सोशल मीडिया साइट की जरूरत आज ऐसी हो गयी है जैसे किसी को अपने घर की जरूरत होती हो।  आप के घर का एड्रेस हो न हो लेकिन अगर सोशल मीडिया साइट पर आप का एड्रेस नहीं है तो आप बहुत  ही गरीब माने जातें हैं।  आज का नारा रोटी -कपडा और मकान न हो कर रोटी-कपड़ा और सोशल मीडिया हो गया है।  आज सोशल मीडिया दिखावा नहीं आप की जरूरत बन गयी है।  लेकिन इस सकारात्मक भष्मासुर को सही उपयोग आप की समझ पर ही निर्भर करता है।  क्युकी परंपरा में गुणात्मक परिवर्तन ही आधुनिकता है , अतः यदि सोशल मीडिया को हम परंपरागत भष्मासुर के  गुणात्मक रूप की तरह उपयोग करेंगे तभी हम आधुनिक कहलाएगें। 

आज किसी देश के राजनितिक नेता का चुनाव हो , व्यक्ति विशेष की पहचान हो , ज्ञान का संसार हो , लोगो की जीविका का साधन हो , लोगों के मनोरंजन का साधन हो , जीवन का कोई भी क्षेत्र हो सभी जगह सोशल मीडिया की एहम भूमिका है।  लेकिन कुछ प्रश्न अभी भी अधूरे हैं , जैसे  सुबह -सुबह जिस व्यक्ति की शक्ल देख कर हम अपना पूरा दिन शुरू करना चाहते थे , क्या उसका स्थान सोशल मीडिया ने ले लिया है?  क्या जिस भाई को हम गले लगा कर उसके  जन्म दिन की बधाई देना चाहते थे उसका स्थान सोशल मीडिया ने ले लिया है? #facebookdown तो #up हो सकता है लेकिन #relationdown शायद कोई भी टेक्नोलॉजी/सोशल मीडिया #up  नहीं कर सकती !

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