मानसिकता डराती है, न की आस्तिकता या नास्तिकता !
कुछ दिन पहले मैं कुछ लेखकों , विचारकों और बुद्धजीवियों के साथ बैठा था। एक रेशनलिस्ट लेखक के लखनऊ दौरे पर हम लोग वहाँ एकत्रित हुए थे। चर्चा यहाँ से शुरू हुई कि यदि कोई रेशनलिस्ट है , तो वह नास्तिक होगा। और अगर नास्तिक है तो वह मानववादी जरूर होगा। लेकिन अगर कोई आस्तिक है तो वह रेशनलिस्ट और मानववादी नहीं हो सकता। वैसे तो मैं हमेशा से ही किसी भी विषय का सामान्यीकरण करने के विरोध में रहता हूँ , क्युकी सामान्यीकरण करके हम विषय विशेष या व्यक्ति विशेष के सकारात्मक पक्षों को उपेक्षित कर देतें हैं ,लेकिन उपर्युक्त वाक्य तो घोषित रूप से विरोधाभाषी है। भगवान है या नहीं , ये तो सदियों से चर्चा का विषय है और आज भी इसका कोई अंतिम निर्णय या की कहें सर्वमान्य निर्णय नहीं अ सका है। आज तक न ही कोई नास्तिक सिद्ध कर सका है की भगवान नहीं है और न ही कोई आस्तिक सिद्ध कर सका है कि भगवान है।
उपरोक्त वाक्य का यदि विश्लेषण किया जाये तो स्वाभाविक रूप से कहा जा सकता है कि मानववादी होने के लिए आस्तिकता और नास्तिकता कभी भी आप के मार्ग में बाधा नहीं बनती। ये आप की इच्छा शक्ति और जागरूकता का ही परिणाम है कि आप अपने समाज और यहाँ उपस्थित मानव या किसी भी जीव के प्रति कैसा दृष्टिकोण रखतें हैं। एक आस्तिक व्यक्ति भी मानव मात्र की सेवा के प्रति समर्पित हो सकता है। और एक बात और भी उठी , वो थी वैज्ञानिक टेम्परामेन्ट की , उसे हमारे संविधान से भी जोड़ा गया , लेकिन फिर से आस्तिकों पर प्रहार करते हुए कहा गया कि नास्तिक लोग में ही वैज्ञानिक सोच और टेम्परामेन्ट हो सकता है।अ जो की बिलकुल गलत है , किसी का आस्तिक होना और भगवान को मानना उसकी श्रद्धा का विषय है , और जो आस्तिक होतें हैं जरूरी नहीं है की वो अन्धविश्वासो को बढ़ावा देतें हों। एक आस्तिक मात्र आत्म संतुष्टि के लिए भी पूजा अर्चना कर सकता है इसका मतलब ये नहीं कि आस्तिक ही अन्धविश्वास में विश्वास करता हो।
फिर अपने 'गुरु वाक्य ' को सिद्ध करने के लिए यह कहा गया कि इस कमरे में हम सभी मनुष्य लोग बैठे हैं , यदि ये कहा जाये की " इस कमरे में भैंस नहीं है तो क्या कोई ऐसा है जो यह सिद्ध कर सके कि इस कमरे में भैंस है ?" लेकिन मैं इसे बहुत ही छिछला उद्धरण मानता हूँ , क्युकी यदि मैं तर्क के साथ भी सिद्ध करना चाहूँ तो कह सकता हूँ कि हम किसी के न होने का विरोध तभी करतें हैं जब वह चीज एक्सिस्ट करती है। यानी जो भगवान का विरोध करतें हैं कहीं न कहीं वो भी मानतें हैं कि भगवान है , तभी तो उसके न होने की बात नास्तिक लोग करतें हैं। खैर ऐसे बहुत से तर्क दोनों पक्षों से प्रस्तुत किये जा सकतें हैं , लेकिन यहाँ पर बात सिर्फ यही है कि यदि समाज में अपनी आत्म संतुष्टि के लिए कोई भगवान को याद करता है और अपने मानव धर्म को भी निभाता है तथा कर्म को सफलता प्राप्त करने का साधन मानता है तो वो आस्तिक होते हुए भी मानववादी कहलाने का हकदार है।
अंत में नास्तिक विशेष को ही मानववादी होने का प्रमाण पत्र देने वाले खेमे से जब पूंछा गया की क्या आप कभी भी राम या अल्हाह का नाम नहीं लेते। तो खेमे से आवाज आती है की वो अनायास कभी - कभी मुँह से 'राम रे ' या 'या अल्हाह ' निकल आता है। फिर क्या था मुस्कुरा के रह गया। वो अलग बात है की नास्तिक खेमे ने इसे भी तर्क से गलत साबित करने का प्रयास किया लेकिन अगली बार भी दर्द के समय कोई अन्य नाम लेने का विकल्प नहीं सोचा। यहाँ पर मैं यह पुनः स्पष्ट करना चाहूंगा कि आस्तिक होना शर्म की बात नहीं है , अगर आप अपने कर्तव्वों और दायित्वों का निर्वहन बिना किसी की स्वाभाविक व अपेक्षित स्वतंत्रता को नुकसान पहुचाये कर रहें हैं। अंधविश्वास को जो मानतें हैं वो कमजोर होतें हैं न की नास्तिक या फिर आस्तिक। नास्तिकता या आस्तिकता आपकी श्रद्धा का विषय है। ये आपको कमजोर नहीं मजबूत बनाता है। आप की मानसिकता आप को डराती है न की आप की आस्तिकता या नास्तिकता।
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