२० से ३० का सफर


कॉलेज में अपने दोस्तों के साथ दुनियाँ जीत लेने के सपने , पेट में भूख लगने के बावजूद घंटों धूप  में दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलना , नई जॉब का नया जोश , पहली सैलरी को दोस्तों पर लुटाना , माँ -बाप के बुलाने पर भी उनके पास न जाना और दोस्तों के साथ घंटों समय बर्बाद करना, फिर उन्ही के पास आकर उनसे नई बॉल के लिए पैसे माँगना। बचत के नाम पर सन्नाटा  और दोस्तों से पैसे उधार न मिलने पर उन्हें बचत का पाठ पठाना , ये सभी बातें उस उम्र की हैं जब हम २० से २५ की उम्र में होतें हैं।  लेकिन जैसे ही हम ३० की ओर अग्रसर होतें हैं बहुत सी आदतें यादें हो जाती हैं या फिर चाह कर भी हम कुछ चीजों को फिर से नहीं करतें हैं। 

ऐसा नहीं है की ये मजबूरी की उम्र होती है , ये एक ऐसी उम्र होती है जहाँ पर हम जीवन रुपी किताब के सबसे सुंदर अध्ध्याय को लिखने जा रहे होतें हैं। इस समय हम किसी को कुछ सिखाने की स्थिति में होतें हैं , यहाँ पर हमने जो कुछ सीखा होता है , वो समाज को लौटाने का समय होता है। हमारे पास कम से कम दोस्त होतें हैं शायद बुरे दोस्त छोड़ कर जा चुके होतें हैं।  हम इस उम्र में घर का खाना , खाना सीख जातें हैं शायद अब तक हमे पता चल जाता है कि घर पर खाने से पैसे बचाये जा सकतें हैं।  गर्ल फ्रेंड के ऊपर पैसा खर्च करना अब खत्म सा हो जाता है क्युकि शायद अब लाइफ पार्टनर की सोच हावी हो जाती है।  हमारा घर , घर जैसा दिखने लगता है , जो की पहले एक कोने में पड़ा हुआ डस्टबिन लगता था। रोज - रोज बियर पीना शायद अब अच्छा नहीं लगता क्युकि अब सेहत प्राथमिकता हो जाती है।  हर सीजन में फैशन के हिसाब से कपडे नहीं बदले जाते , क्युकी इस उम्र में जेब का हम पर अधिकार हो जाता है। जिंदगी से प्यार होने लगता है , क्युकी शायद बहुत बार मौत के मुँह से खेलने का शौख थक चुका होता है।  अब हमें सही रास्ते का पता चल चुका होता है क्युकि कई सालों से हम गलत रास्तों पर चल -चल कर कुछ सही रास्ते जान गए थे।  कल तक सुबह  एक्सरसाइज करना और हेल्थी खाना, सपना लगता था आज ये सपना हक़ीक़त में जीना अच्छा लगता है।  जितना कुछ २० की उम्र में गलत किया था शायद उसी का नतीजा है की ३० की उम्र में एक सही समझ की पैदावार तैयार हुई है। 

कई लोग को शायद दुःख होता है की जो २० की उम्र में करना चाहिए था वो नहीं कर पाये , क्युकि ३० की उम्र में बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं जो चाह कर भी हम नहीं कर पातें हैं , क्युकि इस समय हमारी प्राथमिकता होती है , घर , शादी , बच्चे , करियर और ऐसा लगता है कि अचानक फुटपाथ पर चलते -चलते हमें बीच सड़क पर जिम्मेदारी रुपी गाड़ी के ड्राइविंग सीट पर बैठा दिया गया है। जब हम २० के थे तो कम से कम माँ - बाप से बात तो करते थे चाहे उनसे पैसों की जिद्द करें या खाना न खाने की जिद्द करें , लेकिन हम कहीं न कहीं उनसे जुड़े होते थे। पहले हमारे पास अधिक पैसे हो न हों , अधिक समय जरूर होता था और हम उसे बाँटते चलते थे।  आज एक डर है कहीं प्यार और समय बाँटने में हम खुद ही पीछे न रह जाये।  पहले हम पैदल चलते थे तब भी सबसे आगे होते थे आज हम जीवन की रेस में दौड़ रहें हैं , बहुत तेज दौड़ रहें हैं लेकिन हमेशा लगता है की बहुत पीछे हैं।  उस समय शायद कुछ ख़राब लोग हमारे साथ थे , जो की आज दूर चले गए हैं लेकिन हम अकेले नहीं है , क्युकी ख़राब विचार हमें हमेशा अपने में जकड़े रहतें हैं।  

हर एक उम्र की अपनी विशेषता है , वैसे तो वैज्ञानिकों का कहना है कि ३० की उम्र में आप सबसे अधिक रचनात्मक होतें हैं।  वैसे ये सच भी है , लेकिन हमें सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए की जिंदगी सिर्फ एक बार ही मिलती है अतः कोशिश ये होनी चाहिए कि उसे पूरा जिया जाये लेकिन विडंबना ये है कि सामान्यतःज्यादातर लोग अपनी जिंदगी इसी में निकाल देतें हैं कि "लोग क्या कहेगें ?"

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