स्वतंत्रता दिवस की नवीनता
एक बार फिर से १५ अगस्त आने वाला है, फिर से तिरंगे के रंग चारो ओर फ़ैल रहें हैं , फिर से मनोज कुमार की मूवी भारतीय टेलीविज़न पर बिना किसी प्रतियोगिता के सुपर हिट होने वाली है। फिर से सारा देश , देशभक्ति गानों में डूबने वाला है, फिर से "भारत की महानता " पर लिखा जायेगा। फिर से तुलनात्मक रूप से हमें दूसरों से आगे होने का एहसास होगा। फिर से अनेकता में एकता की बात होगी। लेकिन नया क्या होगा ? यही प्रश्न मैंने अपने एक मित्र से पूछा, तो उसने कहा इस बार का वीकेंड २ दिन के बजाये ३ दिन का होगा। क्युकी स्वतंत्रता दिवस शुक्रवार को पड़ रहा है। हम लॉन्ग हॉलिडे पर जायेगें। उसका तो अगले सोमवार भी ऑफिस नहीं है , यानी ४ दिन का वीकेंड। हाँ ! ये सुनने में कुछ नया लगा। जीवन में यदि नवीनता बनी रहे तो जीने का मजा अलग होता है। चलो इस बार का स्वतंत्रता दिवस कुछ तो नया लाया नहीं तो हर बार तो सिर्फ एक दिन की ही छुट्टी लाता था।
लेकिन इस स्वतंत्रता दिवस एक चीज़ और है जो स्वतंत्र रूप से सभी के सामने है और सभी लोग स्वतंत्र रूप से अपने अनुसार उसका प्रयोग कर रहें हैं। वह है , सेकुलरिज्म को परिभाषित करने की स्वतंत्रता। अपने विवेकाधिकार के तहत कोई भी किसी के भी सेक्युलर होने का प्रमाण पत्र माँग सकता है। इस स्वतंत्रता दिवस पर सबसे ज्यादा प्रश्न "सेक्युलर " शब्द के ही इर्द - गिर्द नजर आतें हैं , और हो भी क्यों न , एक प्रगतिशील और वैज्ञानिक समाज से "प्रश्नों " की अपेक्षा तो सदैव होती है और होती रहेगी। किसी लड़की का बलात्कार हो जाता है तो सेक्युलर समाज प्रश्न उठाता है, लड़की हिन्दू थी या मुस्लिम ? कोई देश का राजनीतिज्ञ मंदिर जाये तो सेक्युलर समाज प्रश्न उठाता है कि मस्जिद क्यों नहीं गया ? कोई देश का नेता मस्जिद चला जाये तो सेक्युलर समाज प्रश्न उठाता है कि मंदिर क्यों नहीं गया ? कोई किसी को राज्य का प्रतिनिधि बनाता है तो सेक्युलर समाज प्रश्न उठाता है कि कैंडिडेट हिन्दू है या मुस्लिम ? कोई इलेक्शन होता है तो सेक्युलर समाज प्रश्न उठाता है की कैंडिडेट हिन्दू बहुल क्षेत्र से है या मुस्लिम बहुल क्षेत्र से ? कोई किसी को त्यौहार की शुभकामना देता है तो सेक्युलर समाज प्रश्न करता है कि शुभकामना देने वाला हिन्दू है या मुस्लिम ? इन तमाम प्रश्नों के बीच में एक दम तोड़ता प्रश्न होता है "ये सेक्युलर लोग हैं कौन ?"
वर्तमान में जो सेकुलरिज्म शब्द बहुत अधिक चर्चा में है। खबरों को पढ़ते हुए ऐसा लगता है की कहीं "हिन्दू , मुसलमान की लड़ाई को ही तो सेकुलरिज्म नहीं कहतें हैं ?" भारतीय संविधान के ४२ वें संशोधन में , इसकी प्रस्तावना में भारत को एक सेक्युलर राष्ट्र कहा कहा गया है। लेकिन आज भी शायद सेक्युलर शब्द स्पष्ट नहीं है। बहुत सी किताबें हैं , बहुत से लेख हैं , और अब तो सोशल मीडिया भी है जहाँ पर "सेक्युलर " शब्द की परिभाषा को पढ़ा जा सकता है। और आज कल तो स्वतंत्रता दिवस का माहौल है और लगभग पूरा सोशल मीडिया इसी के बारे में लिख रहा है वहां से भी सेक्युलर शब्द का अर्थ मिल सकता है। लेकिन समझायेगा कौन की "सेक्युलर " कौन होता है ? क्युकी कभी - कभी लगता है एक पार्टी विशेष सेक्युलर है और कभी -कभी लगता है दूसरी पार्टी विशेष सेक्युलर है। लेकिन हम देखते हैं की पिछले इलेक्शन में जब इन दोनों पार्टियों ने अलग -अलग चुनाव लड़ा था तो ये दोनों पार्टियां एक - दूसरे को नॉन - सेक्युलर कह रहीं थी और जब अगले इलेक्शन में साथ - साथ चुनाव लड़ा तो एक दूसरे को सेक्युलर कह कर गले लगा लिया। फिर से सब कुछ पढ़ा -लिखा व्यर्थ चला गया। और फिर से सारी चर्चा में "सेक्युलर" के साथ - साथ दो शब्द और पेंडुलम की तरह इधर -उधर झूलते नजर आये, वो हैं "हिन्दू " और मुसलमान " . कभी - कभी लगता है कि १९४७ से हमारा तीन रंगो का तिरंगा तो लहरा रहा है और उसे स्थिरता भी मिल गयी है लेकिन शायद ये तीन शब्द "हिन्दू " , "सेक्युलर " और "मुसलमान " आज भी अपनी स्थिरता के लिए संघर्षरत हैं , शायद अगला स्वतंत्रता दिवस एक और लम्बे वीकेंड के साथ एक स्थिर संघर्ष विराम को ले कर आये और हमें सेक्युलर होने का सही अर्थ समझाए !
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