डिजिटल भारत


डिजिटल पावर की  पहुँच को यदि समाजशास्त्र के  ढंग से  देखा जाये तो हम पाते हैं कि  समाज की सबसे छोटी इकाई यदि परिवार है तो वहाँ पर भी लोग आपस में डिजिटली जुड़े हैं।  उसके बाद अगली कड़ी में अपने लोकल कम्युनिटी से भी लोग डिजिटली कनेक्टेड हैं।  उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर भी लोग आपस में डिजिटली सम्पर्क में हैं।  और इन सब को मिला कर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी लोगो का डिजिटल नेटवर्क ही उन्हें आपस में जोड़े हुए है। कहने का तात्पर्य यह है की शहरी जनसँख्या का अधिकांश या की कहें बहुसंख्यक समाज आपस में डिजिटली जुड़ा हुआ है और हर एक दिन डिजिटली कनेक्टेड लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।  आज समाज का शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र होगा जहाँ पर जहाँ पर "डिजिटल " शब्द अनुपस्थित मिले। कल तक हम यदि सामाजिक सम्बन्ध , राजनितिक सम्बन्ध , आर्थिक सम्बन्ध या फिर सांस्कृतिक सम्बन्धो की बात करते थे तो आज सम्बन्धो की इस धारा में डिजिटल सम्बन्ध भी जुड़ गया है , जो अब राष्ट्रीय न हो कर एक अंतर्राष्ट्रीय विषयवस्तु हो गयी है. 




जैसा की देश के "प्रधान सेवक " ने लाल किले के प्राचीर से कहा भारत को "डिजिटल भारत " बनाना है ; तो अभी तो ये एक सपने जैसा लगता है लेकिन यदि सपना दिखा दिया गया है तो सम्भावना के धरातल पर उस सपने को प्राप्त करने की सच्चाई को भी स्वीकारा जा सकता है।  इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत के इंजीनियर्स अपनी टेक्नोलॉजी के झंडे को विश्व भर में लहरा रहें हैं।  लेकिन देश का एक बहुत बड़ा भाग जो की हमारे गाँवो  में रहता है वो आज भी इस टेक्नोलॉजी के लाभ से अनभिज्ञ है और यदि जानते भी हैं तो उसका उपयोग करने और लाभ उठाने में क्षक्षम नहीं हैं।  अतः यदि देश के प्रधान मंत्री ये कहतें है कि "डिजिटल इंडिया " का मतलब की इलीट क्लास से न होकर गरीब लोगों से है तो ये बहुत ही उत्साहजनक कदम कहा जा सकता है।  आज किसी मेट्रो शहर में बैठा एक युवा बहुत ही आसानी से बिना की विदेश यात्रा के अपने ज्ञान को बढा सकता है तो भारत के गाँवो में बैठे तमाम युवा भी मेट्रो शहर में उपलब्ध ज्ञान का उपयोग क्यों नहीं कर सकते ? एक सफल ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी कई तरह से कई पक्षों को संतुष्ट कर सकती है , यथा एक डॉक्टर गाँवो में न जाकर भी अपने ज्ञान से लोगो की जरूरतों को हल कर सकता है और एक ग्रामीण बिना शहर के चक्कर लगाये सारी सुभिधायों का लाभ उठा सकता है। आज मोबाइल की पहुँच गाँवो और शहरों दोनों जगह है , लेकिन एक बहुत बड़ा फर्क ये है की शहर का व्यक्ति तो इंटरनेट कनेक्टिविटी से मोबाइल फ़ोन का भरपूर उपयोग कर रहा है लेकिन गाँवो का व्यक्ति समान पैसे खर्च कर भी अपने मोबाइल का पूरी तरह से उपयोग नहीं कर पा  रहा है। इ - गवर्नेंस की परिभाषा का अतिक्रमण कर के यदि प्रधान मंत्री उसे इजी - गवर्नेंस , इफेक्टिव - गवर्नेंस और इकनोमिक - गवर्नेंस तक ले जातें हैं तो इसकी परिणीति गुड गवर्नेंस ही होनी चाहिए। जैसा की प्रधान मंत्री की ही आशा है।  

किन्तु आशा और सपनों के इस माहौल में यदि ट्राई के चेयरमैन राहुल खुल्लर  कुछ आधारभूत प्रश्नों को उठातें हैं तो उसे भी अनदेखा नहीं किया जा सकता , यथा आज भी  राजधानी दिल्ली में जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र ओन लाइन मिलना संभव नहीं है, तो गाँवो में इ - एजुकेशन , इ - हेल्थ जैसी बातें कुछ अटपटी सी लगती हैं।  उन्होंने इस बात की ओर भी इशारा किया कि यू पी ए - २ के सरकार के समय शुरू की गयी नेशनल ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क प्रोजेक्ट अपने सुनिश्चित समय से ३ साल पीछे चल रहा है।  श्री खुल्लर के अनुसार चूँकी सभी सर्विसेज मोबाइल पर ही दी जाएगी लेकिन लेकिन इसके कंटेंट को कौन विकसित करेगा इसका खुलासा अभी तक नहीं किया गया है।  ऐसे तमाम आधारभूत अनुत्तरित प्रश्न हैं तो इस डिजिटल सपने को कभी न पूरा होने वाला असंभव सपना साबित करने का दम रखतें हैं। 

खैर जो भी हो "डिजिटल इंडिया " संकल्पना एक सुनहरे सपने की तरह है , जिसे पाना असंभव तो नहीं है लेकिन रस्ते में बहुत सी अड़चनों का सामना करना भी स्वाभाविक होगा।  वैसे इस लोक सभा चुनाव में डिजिटल पावर को तो हम देख चुकें हैं , और हम उम्मीद कर सकतें हैं कि अब शायद "डिजिटल इंडिया " इस सफलता की राह में डिजिटल पावर का दूसरा सफल स्तर हो।  


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